वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />९ अप्रैल २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />दोहा:<br />हद चले सो मानवा, बेहद चले सो साध |<br />हद बेहद दोनों तजे, ताका मता अगाध ||<br /><br />प्रसंग:<br />न कैद की कसक, न मुक्ति की ठसक?<br />हम सीमाओ में क्यों जीते है?<br />क्या सीमाओ के पर भी कुछ है?<br />"हद चले सो मानवा, बेहद चले सो साध" यहाँ बेहद कहने का क्या आशय है?